नाटक-एकाँकी >> जादू का कालीन जादू का कालीनमृदुला गर्ग
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इस नाटक को 1993 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् का सेठ गोविन्द दास पुरस्कार मिल चूका है।
राजनीतिक, प्रशासनिक भ्रष्टाचार के पूरे तंत्र को खोलने वाला, बच्चों की चीख सा दर्दनाक नाटक जादू का कालीन 'ऐसा एक पेंच है' जहाँ सब मिलकर हमारी निर्ममता को बेनकाब करते हैं। इसमें पात्र बच्चे हैं पर नाटक वयस्कों के लिए है क्योंकि वही हैं जिन्हें इस निर्ममता का प्रतिकार करना है। साड़ी विसंगति मानवीय विडम्बना, पाखण्ड के बीच मृदुला गर्ग ने फैंटेसी की लय को पकड़ा है। यह उनकी नाटयकला का नमूना है कि वे निर्ममताओं के बीच बच्चों की उड़नछू प्रवृति को नहीं भूलतीं। जिस कालीन को बुनना उनके शोषण का माध्यम है, बच्चे उसी को जादू का कालीन बतलाकर कहते हैं कि वे उस पर बैठकर उड़नछू हो जायेंगे। एक...दो...तीन उठमउठू : तीन...दो...एक भरनभरू : एक दो तीन...उड़नछू। यह गीत मुक्ति का मंतर बन जाता है, जो पूरे नाटक में आशा के स्वर की तरह गूंजता है। नाटक में मृदुला जी ने लोक का कथात्मक स्वर भी बखूबी जोड़ा है। इस नाटक को 1993 में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् का सेठ गोविन्द दास पुरस्कार मिल चूका है।
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